नई दिल्ली: लोकसभा में गुरुवार को गृहमंत्री अमित शाह ने संविधान (130वां संशोधन) विधेयक पेश किया, जिसके अनुसार यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री किसी ऐसे अपराध में गिरफ्तार होकर 30 दिनों से अधिक जेल में रहते हैं, जिसमें पाँच साल या उससे अधिक की सज़ा का प्रावधान है, तो उन्हें पद से हटाया जा सकेगा।
जैसे ही यह बिल पेश हुआ, विपक्ष ने संसद में जोरदार हंगामा किया। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना (UBT) और एआईएमआईएम समेत कई दलों ने इसे “कठोर, असंवैधानिक और लोकतंत्र विरोधी” बताया। विपक्ष का आरोप है कि केंद्र सरकार इस कानून का इस्तेमाल गैर-भाजपा मुख्यमंत्रियों को फँसाने और राज्य सरकारों को अस्थिर करने के लिए करेगी।
बिल में क्या है?
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संविधान की धारा 75, 164 और 239AA में संशोधन का प्रस्ताव।
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कोई भी मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री यदि 30 दिन से अधिक हिरासत में रहता है और उस पर पाँच साल या उससे अधिक की सज़ा वाले अपराध का आरोप है, तो पद से हटाया जाएगा।
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दोषसिद्धि ज़रूरी नहीं, सिर्फ़ आरोप और हिरासत ही पर्याप्त होंगे।
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रिहाई के बाद वही व्यक्ति फिर से पद पर बहाल हो सकता है।
विपक्ष का विरोध
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प्रियंका गांधी वाड्रा: इसे “तानाशाही और लोकतंत्र पर हमला” बताया।
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अभिषेक बनर्जी (TMC): कहा कि मकसद सिर्फ़ “सत्ता, पैसा और नियंत्रण” है।
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शिवसेना (UBT): इसे “व्यक्तिगत स्वतंत्रता खत्म करने और देश को तानाशाही की ओर धकेलने वाला कदम” कहा।
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असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM): बोले, “यह चुनी हुई सरकारों के ताबूत में आखिरी कील है। सरकार पुलिस स्टेट बनाना चाहती है।”
संख्याओं का गणित
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बिल पारित करने के लिए लोकसभा में दो-तिहाई बहुमत (361 वोट) चाहिए, जबकि एनडीए के पास केवल 293 सीटें हैं।
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राज्यसभा में 160 वोट की ज़रूरत, एनडीए के पास सिर्फ़ 132।
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विपक्ष के समर्थन के बिना यह बिल पारित होना लगभग असंभव।
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अगर संसद से पास भी हो जाए, तो आधे राज्यों की मंज़ूरी और अंततः सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी तय।
सरकार की दलील
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि राजनीति में नैतिक मूल्यों को ऊँचा उठाने और जनता का भरोसा कायम रखने के लिए यह बिल ज़रूरी है। उन्होंने विपक्ष को याद दिलाया कि “मैंने 2010 में गिरफ्तारी से पहले इस्तीफ़ा दे दिया था। हमें इतने बेशर्म नहीं होना चाहिए कि जेल में रहते हुए भी पद पर बने रहें।”
सरकारी सूत्रों ने बताया कि भले ही बिल अभी क़ानून न बन पाए, लेकिन इसका उद्देश्य विपक्ष को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरना है। सूत्रों के अनुसार, “अगर विपक्ष इसका विरोध करता है, तो यह संदेश जाएगा कि वे जेल से मंत्रालय चलाने को सही मानते हैं।”
असली मक़सद?
विश्लेषकों का मानना है कि सरकार जानती है कि यह बिल पास नहीं होगा, लेकिन इसे पेश कर उसने राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है। विपक्ष के हंगामे को जनता के सामने “भ्रष्ट नेताओं को बचाने की कोशिश” के रूप में दिखाया जाएगा।
Author: News Desk
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