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रूस-बेलारूस युद्धाभ्यास में भारत की मौजूदगी: क्यों असहज है अमेरिका और नाटो

India at Russia-Belarus war games

रूस और बेलारूस के संयुक्त सैन्य अभ्यास ज़ापाद 2025 में भारत की भागीदारी ने पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका और नाटो (NATO), को चिंतित कर दिया है। इस अभ्यास में भारत ने अपने 65 सैनिक भेजे। इसमें परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की सिमुलेशन ड्रिल भी शामिल थी। यह रूस-बेलारूस का पहला बड़ा युद्धाभ्यास है जो मॉस्को के यूक्रेन पर हमले के तीन साल बाद हुआ।

भारत की रणनीति और रूस से रिश्ते

दिल्ली में इस भागीदारी को रूस के साथ लंबे समय से चले आ रहे रक्षा संबंधों को गहरा करने के तौर पर देखा जा रहा है। भारत की सेना अब भी बड़े पैमाने पर रूसी हथियारों और तकनीक पर निर्भर है। ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के जरिए रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण की कोशिशें जारी हैं, लेकिन निकट भविष्य में रूस पर निर्भरता खत्म करना संभव नहीं।

पश्चिम की चिंता

नाटो और यूरोपीय संघ को भारत की इस भागीदारी से असहजता है। यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रमुख काया काल्लास ने कहा कि भारत से साझेदारी केवल व्यापारिक समझौते तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की रक्षा भी शामिल है। उन्होंने रूस से तेल खरीद और सैन्य अभ्यास में शामिल होने को सहयोग में बाधा बताया। हालांकि उन्होंने माना कि भारत पूरी तरह रूस से दूरी नहीं बना सकता।

अमेरिका ने इस अभ्यास को बारीकी से देखने के लिए अपने सैन्य प्रतिनिधि भेजे। वाशिंगटन को आशंका है कि भारत का झुकाव रूस और चीन की ओर बढ़ सकता है, जबकि अमेरिका चाहता है कि भारत एशिया-यूरोप क्षेत्र में उसका मज़बूत सहयोगी बना रहे।

तेल और व्यापार विवाद

भारत ने स्पष्ट किया है कि रूस से तेल खरीद उसकी ऊर्जा आवश्यकताओं के कारण है और वह हमेशा सबसे सस्ता सौदा खोजेगा। भारत ने पश्चिम पर दोहरे मापदंड का आरोप भी लगाया है—जहां यूरोप अब भी रूस से गैस खरीद रहा है और चीन पर अमेरिकी प्रतिबंधों में ढील दी गई है।

व्यापार मोर्चे पर, अमेरिका ने भारत पर भारी शुल्क लगाए हैं, लेकिन भारत ने न तो पलटवार किया है और न ही रणनीतिक लाभ छोड़े हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच हालिया फोन कॉल को रिश्तों में संभावित सुधार के संकेत के तौर पर देखा गया, लेकिन ज़ापाद युद्धाभ्यास ने इस संभावना पर नया साया डाल दिया है।

नाटो देशों की सुरक्षा चिंताएं

पश्चिमी देशों की चिंता का एक और पहलू यह भी है कि 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला बेलारूस में हुए युद्धाभ्यास के तुरंत बाद किया था। इस बार भी पोलैंड समेत नाटो देशों ने आशंका जताई कि अभ्यास के दौरान सीमा पार हमले हो सकते हैं। हाल ही में पोलैंड ने अपनी हवाई सीमा में रूसी ड्रोन गिराए थे, जिससे स्थिति और तनावपूर्ण हो गई।

निष्कर्ष

भारत की यह भागीदारी साफ संकेत देती है कि वह अपनी विदेश नीति में रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखना चाहता है। भारत अमेरिका, रूस, यूरोप और चीन सभी के साथ काम करने का इच्छुक है, लेकिन अपने शर्तों पर। बदलते भू-राजनीतिक हालात में भारत का यह संतुलन अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की दिशा तय करने में अहम साबित हो सकता है।

News Desk
Author: News Desk

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