राजस्थान की धरती जितनी वीरता और त्याग की प्रतीक है, उतनी ही यह लोक साहित्य और लोक कथाओं की भी भूमि है। यहाँ की लोक कथाएँ केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि समाज के नैतिक मूल्यों, परंपराओं और जीवन दर्शन की अभिव्यक्ति हैं।
लोक कथाओं में अमर कथानक जैसे “ढोला-मारू”, “पाबूजी की फड़”, “देव नारायण की कथा” और “गोगाजी की गाथा” आज भी गाँवों में गाई जाती हैं। ये कथाएँ लोक गायकों और भाट समुदाय के माध्यम से पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ती रही हैं। इनका उद्देश्य केवल कथा कहना नहीं, बल्कि समाज को साहस, निष्ठा और न्याय के संदेश देना है।
राजस्थान का लोक साहित्य गीत, दोहे, कहावतें और लोक महाकाव्यों का भंडार है। मीरा बाई के भक्ति गीत, सूर्यमल्ल मिश्रण के वीर रस से भरपूर पद और चंपा रामायण जैसे काव्य आज भी जनमानस में जीवित हैं। लोक भाषा में रची गई ये रचनाएँ हर वर्ग के लोगों के हृदय से जुड़ी हुई हैं।
राज्य सरकार ने लोक साहित्य को संरक्षित करने के लिए “राजस्थान लोक कला अकादमी” और “साहित्य अकादमी” जैसी संस्थाएँ स्थापित की हैं। इनके माध्यम से लोक कलाकारों, गायकों और लेखकों को मंच और सम्मान प्रदान किया जा रहा है।
आज डिजिटल युग में लोक साहित्य को नई पहचान देने की आवश्यकता है। सोशल मीडिया और ऑनलाइन मंचों के ज़रिए इन कथाओं को युवाओं तक पहुँचाया जा सकता है। इससे न केवल सांस्कृतिक पहचान बचेगी बल्कि नई पीढ़ी अपने इतिहास से भी जुड़ेगी।
कुल मिलाकर, राजस्थान की लोक कथाएँ और लोक साहित्य इस भूमि की आत्मा हैं। वे हमें यह सिखाते हैं कि परंपरा केवल अतीत की चीज़ नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य का मार्गदर्शन भी है। इन्हें संजोकर रखना हमारे सांस्कृतिक अस्तित्व का कर्तव्य है।
Author: News Desk
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