दिल्ली और इसके आसपास के इलाके पूरे नवंबर महीने ज़हरीली हवा से बुरी तरह जूझते रहे। राजधानी में हवा की गुणवत्ता लगातार ‘बहुत खराब’ से ‘गंभीर’ श्रेणी के बीच बनी रही। डॉक्टरों का कहना है कि ऐसी हवा में सांस लेना स्वस्थ लोगों के लिए भी हानिकारक है, जबकि हृदय और फेफड़े से संबंधित बीमारियों वाले लोगों को संभव हो तो शहर छोड़ देने की सलाह दी गई है।
स्कूलों ने ऑनलाइन कक्षाएँ शुरू कर दी हैं, निर्माण गतिविधियों पर रोक और वर्क-फ्रॉम-होम जैसे आपातकालीन कदम लागू हैं। इसके बावजूद, स्थानीय निवासी कहते हैं कि ये उपाय स्थिति नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
AQI रिपोर्ट: उत्तर भारत के शहर सबसे प्रदूषित
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, निगरानी में शामिल 240 शहरों में से 22 शहर ‘बहुत खराब’ श्रेणी (AQI 301-400) में हैं। इनमें से अधिकांश शहर उत्तर भारत में हैं।
आज कोई भी शहर ‘गंभीर’ श्रेणी (AQI 400+) में नहीं है, लेकिन 13% स्टेशनों में AQI ‘खराब’ (201-300) दर्ज किया गया। सकारात्मक पहलू यह है कि 21 शहर ‘अच्छी’ श्रेणी (AQI 0-50) में हैं।
आज के सबसे प्रदूषित शहर
सबसे ऊपर है हापुर (AQI 389), इसके बाद नोएडा (373), ग्रेटर नोएडा (364), मानेसर (356) और दिल्ली (353)—सभी NCR क्षेत्र के अंतर्गत। दिल्ली में रोहिणी सबसे प्रदूषित क्षेत्र है। राज्य सरकार ने GRAP स्टेज-4 लागू रखा है, जो AQI 400 पार होने पर लागू होता है, हालांकि राजधानी आज इस सीमा से थोड़ा नीचे है।
अन्य प्रदूषित शहरों में अंगुल, कटक और सिंगरौली भी शामिल हैं, जो दिखाता है कि संकट NCR से आगे भी फैला है।
नवंबर का रुझान: पूरा महीना स्मॉग की चादर में लिपटा NCR
पूरे नवंबर में दिल्ली और NCR के शहर बार-बार 300 से ऊपर के खतरनाक AQI स्तर रिकॉर्ड करते रहे।
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11 नवंबर को दिल्ली का AQI 428, जबकि ग्रेटर नोएडा का 406 हुआ—जो महीने का सबसे खराब दिन रहा।
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हापुर, नोएडा और ग्रेटर नोएडा लगभग हर दिन प्रदूषण सूची में शीर्ष पर रहे।
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मानेसर ने शुरुआत में बेहतर प्रदर्शन किया (4 नवंबर को 120, 6 नवंबर को 128), लेकिन बाद में यह भी 20 नवंबर को 300 पार कर गया और 25 नवंबर को 356 पर पहुंच गया।
स्थिति गंभीर: दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता
आपातकालीन उपायों के बावजूद उत्तर भारत में Air Emergency Delhi जैसी स्थिति बनी हुई है। लगातार कई हफ्तों से हवा की गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ श्रेणी में रहने के कारण यह अब सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल बन चुका है। विशेषज्ञों के अनुसार, इसके लिए सिर्फ तात्कालिक कदम नहीं, बल्कि मजबूत और दीर्घकालिक नीतिगत समाधानों की जरूरत है।
Author: News Desk
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