नई दिल्ली/केरल: गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि लोकतंत्र में “संवैधानिक नैतिकता” का पालन करना सत्ता और विपक्ष दोनों की जिम्मेदारी है। उन्होंने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर उन्होंने गिरफ्तारी के बाद इस्तीफा दे दिया होता, तो सरकार को यह बिल लाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
बुधवार को संसद में सरकार ने तीन बिल पेश किए, जिनमें यह प्रावधान है कि प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री या राज्य मंत्री यदि गंभीर आपराधिक मामलों में 30 दिन लगातार जेल में रहते हैं, तो उन्हें पद से हटाया जाएगा।
शाह का बयान
केरल में मणोरमा न्यूज़ कॉन्क्लेव में बोलते हुए शाह ने कहा, “क्या देश की जनता चाहती है कि कोई मुख्यमंत्री जेल में रहकर सरकार चलाए? संविधान बनाते समय किसी ने यह नहीं सोचा था कि जेल जाने के बाद भी कोई निर्वाचित पद पर बना रहेगा।”
उन्होंने कहा, “एक घटना हुई जहां मुख्यमंत्री ने जेल से सरकार चलाई। अब सवाल है कि क्या संविधान में बदलाव होना चाहिए या नहीं? अगर केजरीवाल ने इस्तीफा दिया होता, तो आज यह स्थिति पैदा ही नहीं होती।”
पीएम मोदी का समर्थन
इसी मुद्दे पर बिहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नए बिल का जोरदार समर्थन किया। उन्होंने कहा, “हमने यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति देखी कि सरकारें जेल से चलाई जा रही हैं, फाइलों पर जेल से हस्ताक्षर किए जा रहे हैं। यही वजह है कि हमने यह कानून लाने का निर्णय किया।”
मोदी ने दावा किया कि उनकी 11 साल की सरकार पर भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं है, जबकि कांग्रेस और आरजेडी के शासन में घोटालों और भ्रष्टाचार की भरमार रही।
विपक्ष का कड़ा विरोध
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस बिल को लोकतंत्र के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा, “देश को फिर मध्यकालीन युग में धकेला जा रहा है, जब राजा जिसे चाहता था जेल भेज देता था। बीते 11 साल में बीजेपी ने ईडी, आईटी और सीबीआई जैसी एजेंसियों को विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के औजार में बदल दिया है।”
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी कहा कि यह “संवैधानिक संशोधन बिल संसद की लोकतांत्रिक और संघीय संरचना को कमजोर करता है।”उन्होंने आरोप लगाया कि इसे सत्र के आख़िरी समय में बिना चर्चा के पेश किया गया ताकि विपक्ष को बोलने का अवसर ही न मिले।
Author: News Desk
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