जब एक युवा कवि अपने लेखन में समग्र गंभीरता के साथ साहित्य पटल पर उपस्थित होता है तो हिंदी साहित्य का मस्तक गर्व से ऊंचा हो जाता है। संक्षिप्त कलेवर में संकेत और व्यंजना के माध्यम से अपनी बात कहना, युवावस्था में मन में आई भावनाओं को कागज पर गढ़ना, सच्चाइयों से साक्षात्कार कराना, और कल्पनाओं की मंद-मंद खुशबू से पाठक को सरोबार कर देना यह सभी गुण युवा कवि दुष्यंत जोशी के लेखन में नजर आते हैं। आप 2918 में राजस्थानी काव्य कृति ‘ऐकर आजा रे चाँद’ पर केंद्रीय साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा युवा पुरस्कार से पुरस्कृत हैं।
जोशी जी के नवीन काव्य संग्रह ‘कॉलेज का कॉरिडोर’ पढ़ते हुए मैं मिश्रित भावनाओं से गुजरती रही। विभिन्न विषयों पर अपनी कलम चलाते हुए उन्होंने सार्थक रचना की है। उनकी पहली रचना ही “घूम रही है धरती” का शीर्षक पढ़ते ही मुझे विष्णु प्रभाकर की रचना “धरती अब भी घूम रही है” की याद आ गई। आज भी लोग अपने संस्कारों को नहीं भूले हैं, वसुधैव कुटुंबकम की भावना से ओतप्रोत लोग अपनी उदारता का परिचय देते हुए आवारा पशुओं को चारा, चिड़ियों को चुग्गा, चीटियों को चूण डालते हैं तभी यह धरती अभी तक अपनी धूरी पर घूम रही है।
युवावस्था में प्रेमिका के साथ बैठ पाना, किसी का अनायास ही दुआएं दे देना, जैसी छोटी-छोटी खुशियों को सहेज कर बहुत ही खूबसूरती से अपनी कविता ‘किन्नरों की दुआएँ’ में प्रस्तुत किया है। हर व्यक्ति के व्यक्तित्व के अनेकों पहलू होते हैं शिवलिंग पर जल चढ़ाकर पूजा अर्चना करना, पेंटिंग करना, बच्चों को चूमना, गाय को सहलाना जैसे कार्य करने वाला व्यक्ति कभी अगर कोई प्रतिशोध या अपना क्रोध जाहिर करता है तो अवश्य ही वह उसका व्यक्तित्व नहीं है बल्कि क्षणिक आवेश है। ऐसा ही कुछ कहती है ‘मैंने देखा है तुम्हें’ कविता।
एक लघुकविता ‘रेत का मान’ हमें गहरी सीख दे जाती है- ‘आँख/ रोटी/ या संबंध/ किरकिरी/ कहीं भी हो/ जीने नहीं देती/ खुदा से डर/ रेत का मान कर’
सभी कविताओं से गुजरने के बाद मैंने पाया कि दुष्यंत जोशी जी की लघु कविताएँ बहुत ही सशक्त और लघुता में समष्टि समेटे हुए हैं। उनकी कविता ‘प्रेम अनंत है’ आध्यात्मिकता के छोर से निकाल कर आती है इस उम्र में इतनी गहराई की सोच रखते हैं दुष्यंत जोशी जी ‘प्रेम/ अनंत है/ प्रेम का कोई छोर नहीं/ प्रेम की पराकाष्ठा है राधा/ निष्काम समर्पण है प्रेम/ समर्पण के पराकाष्ठा है मीरा’
आप प्रकृति से भी सीधा संबंध बनाए हुए हैं हमारे पंचतत्व हमें निशदिन जीना सिखाते हैं। प्रकृति की इस अनुपम देन से हम तपना, शीतलता, धैर्य और ऊंचाइयों को छूना सभी कुछ सीख जाते हैं। ऐसे ही कुछ भाव प्रकट करती हैं आपकी कविता ‘प्रकृति’।
आज जंतु जगत कम होता जा रहा है नष्ट होते पेड़-पौधे, हरियाली, जीव-जंतुओं के रहने का स्थान खत्म कर इंसान फैलता जा रहा है। तो इंसान ने ही जीव-जंतुओं के सारे गुण ग्रहण कर लिए हैं। गिरगिट की तरह रंग बदलना, मेंढक की तरह उछालना, कुत्ते की तरह भौंकना, सांप की तरह डसना सब कार्य मनुष्य ही करने लगा है। आज का मानव सफलता के लिए भाग दौड़ रहा है। इस भागदौड़ में वह सफलता के लिए आवश्यक नियमों को छोड़ एक दूसरे को धक्का दे आगे बढ़ाने की कोशिश करता है। कविता ‘छलांग’ में लघुता में ही अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहते हैं- छलांग लगाकर/ बढ़ाना है आगे/ तो पीछे जा/ खड़े-खड़े/ छलांग तो/ मेंढक लगाया करते हैं।’
कविताओं का कला पक्ष और भाव तो श्रेष्ठ है ही शिल्प पक्ष भी उत्तम है। युवावस्था में गहरी सोच रख कर अपनी कलम से समय की पीठ पर हस्ताक्षर करने में सक्षम रहे हैं दुष्यंत जोशी। कल्पनाओं, अभिव्यक्तियों, व्यंजनों का सहारा लेकर उत्तम शिल्प की रचना की है। मेरा विश्वास है कि भविष्य में भी इसी तरह साहित्य को समृद्ध करते रहेंगे।
पुस्तक : कॉलेज का कॉरिडोर
लेखक : दुष्यंत जोशी
प्रकाशक : कल्याणी प्रिंटर्स, बीकानेर
मूल्य : ₹160
पृष्ठ : 80
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