बजट पर चर्चा के दौरान भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने ‘मदारी और बंदर’ का एक दृष्टांत देते हुए कहा कि – ‘झूठ कांग्रेस और राहुल गांधी के कंधे पर सवार होकर सैर करता है.’ इस पर सभापति जगदंबिका पाल ने उन्हें सलाह दी कि – ‘झूठ’ के बजाय आप ‘असत्य’ कहें, झूठ असंसदीय है. इसके बाद अनुराग ठाकुर ने झूठ की जगह ‘असत्य’ कहना शुरू किया. ये ‘झूठ और असत्य’ लोकसभा में कहा जा रहा था.
सदन की गरिमा है, इसलिए आप वहां कुछ भी नहीं कह सकते. कहेंगे तो फिर एक्सपंज करना पड़ता है. एक्सपंज बोले तो सदन के रिकॉर्ड्स से कार्यवाही के किसी ख़ास हिस्से को हटाना. इसके लिए सदन में जो कुछ कहा गया, उसे पहली नज़र में तो देखा जाता है, फिर तय पाया जाता है कि इसे हटाया जाए या नहीं. लिहाज़ा, सभापति की कुर्सी पर बैठा कोई भी ज़हीन शख़्स इससे ज़रा बचता है.
अभी पिछले हफ्ते ही की बात है, बजट ही पर हो रही चर्चा के दौरान पश्चिम बंगाल के तामलुक से सांसद अभिजीत गंगोपाध्याय ने ‘स्टूपिड’ शब्द का इस्तेमाल कर दिया. अब ये ‘बालक बुद्धि’ की तरह इशारों-इशारों में तो था नहीं. ऐसे में, विपक्ष नाराज़ हो गया. दरअसल, सांसद महोदय लोकसभा में अपना पहला भाषण (मेडन स्पीच) दे रहे थे. इसी बीच विपक्षी खेमे के किसी माननीय ने कुछ हस्तक्षेप किया.
एक्स जस्टिस एंड नाउ एमपी गंगोपाध्याय को बात हद से ज़्यादा बुरी लग गई. उन्होंने टोकने वाले सांसद को डपटते हुए मशवरा दिया कि – dont talk like a stupid sir. मशवरा इसलिए क्योंकि गुस्सा आया भी तो उन्होंने ‘स्टूपिड’ के साथ ‘सर’ कहा. चूंकि गंगोपाध्याय साहब का नाता अदलिया से भी रहा है, वही इस तरह के फ़िक़रे गढ़ सकते थे.
कुरूप कहते हुए किसी के स्वरूप की बखान कर देना, गाली देते हुए तारीफ़ भी कर देना, कहां तो इस तरह के नायाब प्रयोग की प्रशंसा होनी चाहिए, मगर यहां तो बुद्धिजीवी वर्ग से केवल और केवल झिड़कियां मिलीं. बाबा कबीर ने सही कहा – साधो, देखो जग बौराना.
गंगोपाध्याय साहब के इस फ़िक़रे को न सिर्फ़ आपत्तिजनक माना गया बल्कि संसदीय गरिमा का ठेस-वेस बताते हुए सदन में गतिरोध का आलम रहा. संसदीय कामकाज में शायद इसी तरह की अड़चन से बचने के लिए जगदंबिका पाल इस बार पहले से तैयार बैठे थे. सो, जैसे ही अनुराग ठाकुर ने ‘झूठ’ बोला, उनके कान खड़े हो गए. उन्होंने फौरन ‘असत्य’ के साथ प्रयोग की सलाह दी. अनुराग ने भी उनकी सलाह को अमल में लिया.
सदन आगे बढ़ चला. मगर कितनी देर? भोजन से अघा चुके और भूखे पेट होने के बावजूद उम्मीद भरी नज़र से लोकसभा का प्रसारण देख रहे, दोनों ही तरह के लोगों को जल्द ही झूठ और असत्य की बोतल में जाति का जहर मिला कॉकटेल-मॉकटेल परोसा जाना था. राहुल गांधी की जाति जनगणना की मांग और वादे पर तंज़ कसते हुए अनुराग ठाकुर ने हल्की भाषा का इस्तेमाल किया.
हल्की इसलिए क्योंकि वह अपनी रैलियों में इससे काफी भारी-भरकम भाषा बरत चुके हैं. अनुराग ने कहा कि – जिसकी जाति का पता नहीं, वो गणना की बात करता है. असभ्य क्या, तथाकथित सभ्य लोग भी जानते हैं कि इसका अर्थ क्या है? प्रधानमंत्री भी समझते ही होंगे, जो उन्होंने अनुराग ठाकुर के भाषण की तारीफ़ की है.
मगर यहीं ये भी नोट किया जाना चाहिए कि एक ऐसे समय में जब हमारे नस-नस में गर्मी रहती है, लोग तनिक सी बात पर उत्तेजित हो उठते हैं, यहां की बात को वहां मोड़ देते हैं… राहुल गांधी ने साफ कह दिया कि यद्यपि उन्हें गाली दी गई, उनका अपमान हुआ मगर वे सबकुछ राज़ी-ख़ुशी पी जाने को तैयार हैं. और वे किसी भी कीमत पर जाति जनगणना कराकर ही दम लेंगे.
पता तो नहीं चला कौन था, लेकिन जब राहुल ये कह रहे थे, तो किसी ने पीछे से आवाज़ लगाई कि – ध्यान रहे उस जाति जनगणना में अपनी जाति भी लिखनी पड़ेगी. बारहां राहुल की जाति पर सवाल उठाने वाली बात अखिलेश यादव को पसंद नहीं आई. अखिलेश आगबबूला हो गए. बोले – कि कोई जाति कैसे किसी की पूछ सकता है, पूछ के बताओ जाति तूम.
मामला बढ़ता देख और फिर मुआ ‘गतिराध’ से बचने के लिए… जो बात स्वाभाविक थी, यूं भी कहने की न थी, वह कही गई. किसी की जाति पूछने का प्रावधान पहले भी संसद में नहीं था. मगर फिर भी सभापति को साफ करना पड़ा कि – इस सदन में कोई किसी से उसकी जाति नहीं पूछेगा. गर्मा-गरम बहस में सबकी नज़रें अब अनुराग ठाकुर की ओर थीं.
चूंकि, अनुराग सूचना-प्रसारण मंत्री भी रह चुके हैं. सो, वह सूचना के संचार को बख़ूबी समझते हैं. लिहाज़ा, उन्होंने झट से कह मारा कि – मैंने किसी का नाम तो लिया नहीं. अनुराग साहब की इस भोली दलील पर कैसे कोई ऐतबार न करता. उनके आसपास बैठा कोई भी शख़्स इसे झुठला न सका. क्योंकि सभी झूठ और असत्य की एक लंबी यात्रा के बाद वहां तक पहुंचे थे.
भारत में हर कोई एक दूसरे की जाति पता करने की फिराक़ में रहता है. लेकिन सीधे तौर पर लोग पूछने से हिचकते हैं. उस्ताद कहते हैं कि आपके नाम के बाद दूसरी चीज़ जो कोई जान लेना चाहता है, वह जाति ही है. अनुराग ठाकुर ने अप्रत्यक्ष तौर पर राहुल गांधी की जाति पर जो टिप्पणी की, वह यूं नहीं थी, उसका सत्तापक्ष के पास काट था.
वह झट से कहने लगा कि हलवा वाली तस्वीर में जाति किसने ढूंढी.
“अच्छा मिश्रा नाम है तुम्हारा, कुछ तो शर्म करो मिश्रा जी”, अखिलेश यादव ने सदन के बाहर जो एक शख़्स से कहा था; राहुल गांधी ने भारत न्याय यात्रा के दौरान जिस तरह पत्रकार शिव प्रसाद यादव से उनका नाम पूछते हुए मिलता-जुलता सवाल किया था, क्या वो सब जाति पूछने की श्रेणी में नहीं आएंगे?
क्या जाति ढूंढी जा सकता है पर पूछी नहीं? या पूछी जा सकती है मगर सदन के अंदर नहीं?
बहरहाल, आपको ख़ुशी होगी जानकर कि ये सारी पूछा-पूछी, कहा-सुनी लोकसभा में ठीक उस समय हो रही थी जब वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण बजट पर अपना वक्तव्य रखने वाली थीं.
ऐसे में, बजट पर हुई चर्चा तो काफी पीछे छूट गई. हलवा, स्टूपिड, जाति चहुंओर गूंजती रही. हालात-ए-हाज़िरा पर व्यंगकार संपत सरल की पंक्ति याद आई – बात करनी थी ग़रीबी की रेखा पर, सभी करते रहें रेखा की ग़रीबी पर.
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