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Founder Of Emojis Manorama : भारतीय सिनेमा की दिग्गज अभिनेत्री मनोरमा का सफरनामा

मनोरमा, जिन्हें उनके प्रशंसक “आचि” के नाम से जानते हैं, भारतीय सिनेमा की एक प्रतिभाशाली और बहुपरकारी अभिनेत्री थीं। जिसके लिए मनोरमा को Founder of Emojis भी कहा जा सकता है। 21 मई 1934 को तमिलनाडु के एक छोटे से गांव में जन्मी, उन्होंने अपने करियर में तमिल, तेलुगु और हिंदी फिल्म उद्योग में खासी पहचान बनाई। मनोरमा की यात्रा एक अविस्मरणीय कहानी है, जो उनके अद्वितीय अभिनय कौशल, विविधता और समर्पण को दर्शाती है।

Glimpse of Manorama

प्रारंभिक जीवन और करियर

मनोरमा ने 1950 के दशक के अंत में अपने अभिनय करियर की शुरुआत की। उन्होंने पहले तमिल फिल्मों में काम करना शुरू किया। उनकी अनोखी शैली और विभिन्न प्रकार के पात्रों को निभाने की क्षमता ने उन्हें जल्दी ही फिल्म निर्माताओं का ध्यान आकर्षित किया। उनकी विशिष्ट आवाज, भावनात्मक चेहरे के हाव-भाव और बेहतरीन हास्य समय ने उन्हें दक्षिण भारतीय सिनेमा में एक घरेलू नाम बना दिया।

“सीता या गीता” में महत्वपूर्ण भूमिका

मनोरमा का सबसे यादगार प्रदर्शन 1972 में आई हिंदी फिल्म “सीता या गीता” में देखने को मिला, जिसे रमेश सिप्पी ने निर्देशित किया था। इस फिल्म में हेमा मालिनी ने मुख्य भूमिका में सीता और गीता का दोहरा किरदार निभाया। मनोरमा ने “मा” का किरदार निभाया, जो एक भावनात्मक और गर्मजोशी से भरी माँ की भूमिका में थीं।

“सीता या गीता” में उनका प्रदर्शन अद्वितीय था। उन्होंने हास्य और भावनाओं का संतुलन स्थापित करते हुए अपने पात्र को दर्शकों के लिए बहुत ही सजीव और प्यारा बना दिया। मनोरमा और हेमा मालिनी के बीच की केमिस्ट्री ने फिल्म में एक वास्तविकता का एहसास कराया, जो माँ और बेटियों के बीच के बंधन को उजागर करती है।

अभिनय शैली और प्रभाव

मनोरमा की अभिनय शैली उनके विभिन्न भावनाओं को आसानी से व्यक्त करने की क्षमता से पहचानी जाती थी। चाहे वह हास्य दृश्य हो या गंभीर क्षण, उन्होंने दोनों में उत्कृष्टता हासिल की। उनकी स्क्रीन पर उपस्थिति अद्भुत थी, और उनके प्रदर्शन अक्सर अन्य कलाकारों की भूमिकाओं को भी overshadow कर देते थे। कुटुंब, सोसाइटी और हुकूमत उनकी अदाकारी का बेहतरीन नमूना है।

“सीता या गीता” में, उनके पात्र की यात्रा—एक सहायक माँ से लेकर अपनी बेटियों के लिए चुनौतियों का सामना करने तक—कई दर्शकों के साथ गूंजती है। उनका प्रदर्शन फिल्म को एक क्लासिक बनाने में महत्वपूर्ण था, और आज भी उनके किरदार को भारतीय सिनेमा के प्रशंसकों द्वारा याद किया जाता है।

विरासत और मान्यता

अपने करियर के दौरान, मनोरमा ने विभिन्न भाषाओं में 1000 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया, और उन्होंने अपने काम के लिए कई पुरस्कार जीते। उन्हें तमिलनाडु राज्य फिल्म पुरस्कार और साउथ फिल्मफेयर पुरस्कार जैसे कई सम्मानों से नवाजा गया।

उनकी विरासत केवल उनके शानदार फिल्मी करियर तक सीमित नहीं है। मनोरमा ने फिल्म उद्योग में महिलाओं के लिए एक आदर्श स्थापित किया, जो रूढ़ियों को तोड़ते हुए मजबूत और स्वतंत्र महिलाओं के किरदारों को प्रस्तुत करती थीं। उनका अनूठा हास्य और भावनात्मक गहराई ने आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मानक स्थापित किया।

मनोरमा का “सीता या गीता” जैसी अनेक फिल्मों में प्रदर्शन उनके शानदार करियर का एक महत्वपूर्ण क्षण है, जो उनकी प्रतिभा और विविधता को दर्शाता है। उन्होंने भारतीय सिनेमा पर एक अमिट छाप छोड़ी है, और उनकी योगदान आज भी नए कलाकारों और फिल्म निर्माताओं को प्रेरित करती है। मनोरमा की यात्रा एक प्रतिभा, दृढ़ता और सिनेमा की कालातीत मोहकता का उत्सव है। उनकी कहानी हमें याद दिलाती है कि अद्वितीय प्रदर्शन और कहानी कहने की शक्ति का क्या महत्व होता है।

News & PR Desk
Author: News & PR Desk

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