जयपुर। राजस्थान साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. दुलाराम सहारण ने मुख्यमंत्री भजनलाल को एक खुला पत्र लिखकर राज्य की साहित्यिक और सांस्कृतिक अकादमियों की बदहाल स्थिति पर चिंता जताई है। उन्होंने अकादमियों को पुनः सक्रिय करने और साहित्यकारों-कलाकारों के सम्मान को सुनिश्चित करने के लिए 20 महत्वपूर्ण सुझाव पेश किए हैं।
राजस्थान की अकादमियों की मौजूदा स्थिति चिंताजनक
डॉ. सहारण ने पत्र में उल्लेख किया कि राजस्थान सरकार के अधीन 10 से अधिक अकादमियां कार्यरत हैं, जो साहित्य, कला, संस्कृति और संगीत के विकास में अहम भूमिका निभाती रही हैं। लेकिन वर्तमान में अधिकांश अकादमियां ठप पड़ी हुई हैं, क्योंकि सरकार द्वारा पूर्व अध्यक्षों और सदस्यों को कार्यमुक्त करने के बाद नए अध्यक्षों की नियुक्ति नहीं हुई।
उन्होंने कहा कि बोर्ड के अभाव में अकादमियां नीतिगत निर्णय लेने में असमर्थ हैं, जिसके कारण साहित्यकारों और कलाकारों के सम्मान एवं कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
बजट और पुरस्कार राशि में भारी वृद्धि की मांग
डॉ. सहारण ने मांग की कि इन अकादमियों का बजट कम से कम दस गुना बढ़ाया जाए, क्योंकि महंगाई के दौर में किताबें प्रकाशित करना और साहित्यिक आयोजन करना कठिन हो गया है।
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि अकादमियों के सर्वोच्च पुरस्कारों की राशि भी 10 गुना बढ़ाई जाए। उदाहरण स्वरूप, राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर का ‘मीरा पुरस्कार’ वर्तमान में मात्र 75,000 रुपये का है, जबकि अन्य राज्यों में साहित्यिक पुरस्कारों की राशि 2 से 10 लाख रुपये तक है।
साहित्यकारों को सुविधाएं देने की अपील
पत्र में डॉ. सहारण ने साहित्यकारों को हरियाणा की तर्ज पर रोडवेज में निःशुल्क यात्रा सुविधा देने और सर्किट हाउस एवं रेस्ट हाउसों में नि:शुल्क ठहराव उपलब्ध कराने की मांग की।
उन्होंने कहा कि इससे न केवल साहित्यकारों का सम्मान बढ़ेगा, बल्कि आयोजकों को भी आर्थिक राहत मिलेगी।
एससी-एसटी वर्ग को प्रतिनिधित्व और वरिष्ठ साहित्यकारों पर डॉक्यूमेंट्री का सुझाव
डॉ. सहारण ने यह भी कहा कि आज़ादी के 80 साल बाद भी राज्य की अकादमियों में एससी/एसटी वर्ग का एक भी अध्यक्ष नियुक्त नहीं हुआ है। इसे वर्गीय भेदभाव बताते हुए उन्होंने आग्रह किया कि कम से कम तीन-चार अकादमियों में इन वर्गों से अध्यक्ष नियुक्त किए जाएं।
इसके साथ ही, उन्होंने वरिष्ठ साहित्यकारों पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माण का सुझाव दिया, जिससे आने वाली पीढ़ियों को उनके संघर्ष और अनुभवों से सीखने का अवसर मिलेगा।
पत्रिकाओं और पुस्तकों के नियमित प्रकाशन पर जोर
अकादमी की पत्रिकाओं को नियमित करने और उन्हें राजस्थान के सभी सरकारी विद्यालयों और महाविद्यालयों में अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराने की भी मांग उठाई गई।
साथ ही, सरकार से आग्रह किया गया कि वह अकादमियों द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की कम से कम 25% खरीद अनिवार्य रूप से करे और इन्हें राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेलों में प्रदर्शित करने की व्यवस्था भी सुनिश्चित करे।
बड़े आयोजनों और स्थायी भर्तियों की मांग
पत्र में डॉ. सहारण ने कहा कि सरकार को बंद पड़े राजस्थानी साहित्य उत्सव और अन्य बड़े आयोजनों को फिर से शुरू करना चाहिए।
उन्होंने इन उत्सवों के लिए हर वर्ष कम से कम 10 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित करने का सुझाव दिया।
साथ ही, अकादमियों में खाली पड़े पदों को भरने और कर्मचारियों की स्थायी भर्ती की मांग भी की।
विशेष पुरस्कारों और ‘राजस्थान रत्न’ सम्मान की निरंतरता
डॉ. सहारण ने राज्य सरकार से आग्रह किया कि बजट घोषणा में लंबित पड़े सीताराम लालस, कोमल कोठारी, विजयदान देथा और कन्हैयालाल सेठिया जैसे नामचीन साहित्यकारों के पुरस्कारों को पुनः शुरू किया जाए।
इसके अलावा, साहित्यकारों को भी ‘राजस्थान रत्न सम्मान’ नियमित रूप से प्रदान किया जाए।
“मजबूत सरकार, फैसले असरदार” – सहारण
पत्र के अंत में डॉ. दुलाराम सहारण ने मुख्यमंत्री भजनलाल से अपील करते हुए लिखा कि –
“आपका नारा है – ‘मजबूत सरकार, फैसले असरदार’। यदि साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में ये फैसले लिए जाते हैं, तभी सरकार को साहित्यिक वर्ग मजबूत मानेंगा। अन्यथा सरकारें आती-जाती रहती हैं, पर याद वही रहती है जो काम किया जाता है।”
सोशल मीडिया पर पत्र वायरल
यह खुला पत्र डॉ. सहारण ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर साझा किया, जिसके बाद यह तेजी से वायरल हो रहा है। साहित्यिक और सांस्कृतिक जगत से जुड़े लोग इन सुझावों पर चर्चा कर रहे हैं और सरकार से सकारात्मक कार्रवाई की उम्मीद जता रहे हैं।
Author: News & PR Desk
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