राजस्थान की लोक चित्रकला राज्य की सांस्कृतिक और धार्मिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। यह कला केवल सौंदर्य का प्रतीक नहीं बल्कि परंपरा, भक्ति और लोक जीवन का प्रतिबिंब भी है। सदियों से राजस्थान के कलाकार मिट्टी की दीवारों, कपड़ों, लकड़ी और कागज़ पर रंगों के माध्यम से अपनी कहानियाँ बयाँ करते आए हैं।
राजस्थान की प्रमुख लोक चित्रकलाओं में फड़ चित्रकला, फड़पाटा, पिछवाई, और मंडाना कला विशेष स्थान रखती हैं। इनमें से फड़ चित्रकलासबसे प्रसिद्ध है, जो धार्मिक कथाओं को दर्शाती है। यह पारंपरिक रूप से लंबी कपड़े की पट्टियों पर बनाई जाती है, जिसमें लोक देवताओं जैसे पाबूजीऔर देव नारायण की कथाएँ चित्रित की जाती हैं।
मंडाना कला, जो विशेष रूप से कोटा और बूंदी क्षेत्र में प्रचलित है, घरों की दीवारों और फर्श पर बनाई जाती है। इसे महिलाएँ शुभ अवसरों पर मिट्टी और चूने से बनाती हैं। यह कला न केवल सजावट का साधन है, बल्कि इसमें शुभता और समृद्धि का संदेश भी निहित होता है।
नथद्वारा की पिछवाई पेंटिंग भी अत्यंत प्रसिद्ध है, जिसमें श्रीनाथजी (कृष्ण) के जीवन प्रसंगों को सूक्ष्म रंगों और जटिल डिज़ाइनों में दर्शाया जाता है। यह कला आज अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी अपनी पहचान बना चुकी है।
राज्य सरकार और सांस्कृतिक संस्थान इन पारंपरिक कलाओं के संरक्षण के लिए प्रयासरत हैं। “राजस्थान ललित कला अकादमी” द्वारा आयोजित प्रदर्शनियों और कार्यशालाओं से कलाकारों को नई पीढ़ी तक यह कला पहुँचाने का अवसर मिल रहा है।
आज डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स और ई-कॉमर्स के ज़रिए राजस्थान की लोक चित्रकला को विश्व स्तर पर प्रदर्शित किया जा रहा है। यदि आधुनिक तकनीक और पारंपरिक कौशल का मेल जारी रहा, तो यह कला न केवल जीवित रहेगी बल्कि राज्य की सांस्कृतिक पहचान को और भी प्रखर बनाएगी।
Author: News Desk
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