विश्लेषक मार्क फ्रेज़ियर का दावा है कि अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति, जिसमें भारत को चीन को रोकने की अहम भूमिका दी गई थी, अब “टूट रही है”।
जर्मन अख़बार Frankfurter Allgemeine Zeitung (FAZ) की रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही हफ्तों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के चार कॉल्स उठाने से इनकार कर दिया। यह टैरिफ विवाद की पृष्ठभूमि में हुआ और इसे मोदी के “गुस्से की गहराई और सतर्कता” का नतीजा बताया गया।
जापानी अख़बार Nikkei Asia ने भी इसी तरह के दावे किए हैं, जिसके मुताबिक़ प्रधानमंत्री मोदी ट्रंप के कॉल्स से बच रहे थे, जिससे ट्रंप की झुंझलाहट बढ़ गई।
टैरिफ विवाद
अमेरिका और भारत के रिश्तों में तनाव उस समय बढ़ गया जब राष्ट्रपति ट्रंप ने भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ को दोगुना करके 50% कर दिया — जो ब्राज़ील को छोड़कर किसी भी देश पर सबसे ज्यादा है। इसमें भारत द्वारा रूसी कच्चे तेल की खरीद पर 25% अतिरिक्त शुल्क भी शामिल है।
भारत ने साफ कर दिया है कि वह अमेरिकी दबाव के सामने झुकेगा नहीं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वे किसानों के हितों से “कभी समझौता नहीं करेंगे”। FAZ के अनुसार, इस टकराव से यह साफ होता है कि नई दिल्ली वॉशिंगटन के दबाव में नहीं झुकेगी। रिपोर्ट में लिखा है, “संकेत हैं कि मोदी खुद को अपमानित महसूस कर रहे थे। ट्रंप से बात करने की अनिच्छा उनके गुस्से की गहराई को दिखाती है।”
पाकिस्तान की भूमिका
रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में ट्रंप की छवि बदल गई है, खासकर उनकी पाकिस्तान को लेकर की गई टिप्पणियों के कारण। मई से ट्रंप बार-बार कहते रहे हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष रोकने में उनका मध्यस्थता का रोल था, जिसे भारत नकारता है। जापानी रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप की “दिखावटी और सौदेबाज़ी वाली कूटनीति” दोनों देशों के रिश्तों में और तनाव का कारण बनी है।
चीन की योजनाएँ
FAZ से बातचीत में विश्लेषक मार्क फ्रेज़ियर ने कहा कि अमेरिका की इंडो-पैसिफिक अवधारणा, जिसमें भारत को चीन को रोकने में अहम भूमिका दी गई थी, “टूट रही है”।
पिछले दो दशकों में भारत और अमेरिका चीन को संतुलित करने के लिए नज़दीक आए थे, लेकिन ट्रंप के टैरिफ के बाद यह साझेदारी कमजोर होती दिख रही है — जिसका फायदा बीजिंग और मॉस्को को हो रहा है।
फ्रेज़ियर ने दावा किया कि नई दिल्ली का इरादा कभी भी अमेरिका के साथ मिलकर बीजिंग का सामना करने का नहीं था। उनका कहना है कि भारत और चीन दोनों वैश्विक संस्थाओं में प्रभाव बढ़ाने की साझा महत्वाकांक्षा रखते हैं।
उन्होंने कहा, “भारत का झुकाव रणनीतिक है, सिर्फ अमेरिकी टैरिफ का जवाब नहीं। अमेरिका के पीछे हटने के साथ ही भारत और चीन का वैश्विक प्रभाव और औद्योगिक विकास में साझा हित है।”
प्रधानमंत्री मोदी अगस्त के अंत में चीन की यात्रा करेंगे और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। यह उनकी पहली आधिकारिक चीन यात्रा होगी और इसे बीजिंग के साथ तनाव कम करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है, साथ ही अमेरिका-चीन संबंधों की अनिश्चित दिशा पर कड़ी नज़र रखी जाएगी।
Author: News Desk
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