जयपुर, 23 मार्च । ‘लेखन में पात्रों का चरित्र सामाजिक दायित्व और परिस्थितियों के आधार पर तय होता है। लेखक अपनी रचनाओं के माध्यम से अपना अनुभव व्यक्त करते हैं। नए लेखकों को अपनी रचनाओं में मानवीय दृष्टिकोण पर ध्यान देना चाहिए,’ यह बात वरिष्ठ साहित्यकार नन्द भारद्वाज ने कलमकार मंच और राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति द्वारा आयोजित पुस्तक चर्चा एवं काव्य संध्या कार्यक्रम में कही।
कार्यक्रम में संस्था के राष्ट्रीय संयोजक निशांत मिश्रा ने कहा कि आज के डिजिटल युग में प्रकाशित पुस्तकों पर चर्चा करना बेहद आवश्यक है। इस प्रकार की चर्चाओं से लेखक के लेखन को बारीकी से परखा जा सकता है, जिससे लेखक को अपने लेखन को आलोचकों और पाठकों की कसौटी पर परखने का अवसर मिलता है।
वरिष्ठ साहित्यकार फारुक आफरीदी ने कहा कि आज के एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के दौर में भी प्रकाशित साहित्य का सिलसिला आने वाले सौ वर्षों तक जारी रहेगा। समाज की सच्चाई को लेखन के माध्यम से पाठकों के सामने लाना साहित्यकार की जिम्मेदारी है।
पटाखा फिल्म के प्रसिद्ध लेखक चरणसिंह पथिक ने कहा कि लेखन की भाषा और शैली में समय के साथ परिवर्तन स्वाभाविक है। लेखक को इन परिवर्तनों के कारणों को समझने की आवश्यकता है।
वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र बोड़ा ने कहा कि लेखक को अपने कथानक को अपने तरीके से प्रस्तुत करना चाहिए। लेखन की रुचि और अलौकिकता पाठक के मन में पढ़ने की जिज्ञासा पैदा करती है।
‘एहसास’ और ‘मंथरा’ पर चर्चा
कार्यक्रम में कवि सुन्दर बेवफ़ा के कविता संग्रह ‘एहसास’ पर चर्चा करते हुए पूनम भाटिया ने कहा कि इस संग्रह में संवेदनाओं से लिपटे शब्द केवल वही नहीं होते, जो दिखाई देते हैं, बल्कि जो अनकहा रह जाता है, वह भी मायने रखता है। उन्होंने यह भी कहा कि जब बात दिल से निकली हो और दिल तक पहुंचानी हो, तो एक निश्चित सांचे की जरूरत नहीं होती। सुनीता बिश्नोलिया ने कहा कि इस संग्रह की कविताएं बिना अलंकारिक शब्दावली के भी गहन अर्थ समेटे हुए हैं, जो पाठक के हृदय पर गहरा प्रभाव छोड़ती हैं।
कवि और लेखक सुन्दर बेवफ़ा ने अपनी किताब पर चर्चा करते हुए कहा कि इस तरह की चर्चाओं से लेखन के सभी पहलुओं का विश्लेषण होता है और भविष्य के लेखन के लिए बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
पत्रकार और साहित्यकार राजेश शर्मा की किताब ‘मंथरा’ पर महेश कुमार ने कहा कि लेखक ने इस किताब में मंथरा के पात्र की पृष्ठभूमि और कार्य कारण को नियति और प्रकृति से जोड़ा है, जो लोक मानस में पापिन की तरह व्याप्त है। कविता मुखर ने कहा कि किताब में हर घटना, प्रत्येक प्रसंग और पात्र का बड़ा महत्व है। उन्होंने यह भी कहा कि पुस्तक पढ़ने के बाद मंथरा और कैकेयी के प्रति श्रद्धा का नया दृष्टिकोण सामने आता है।
लेखक राजेश शर्मा ने कहा कि अगर मंथरा और कैकेयी जैसे पात्र नहीं होते, तो क्या रामायण आज भी प्रासंगिक होती? उनका मानना है कि ये पात्र रामायण की पटकथा को न सिर्फ प्रभावित करते हैं, बल्कि इसकी प्रासंगिकता बनाए रखते हैं।
काव्य संध्या में रचनाओं का पाठ
कार्यक्रम के दौरान एक दर्जन से अधिक कवियों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत की, जिनकी श्रोताओं ने खूब सराहना की। महेश कुमार ने ‘हिंदू हूं, मुसलमान से डर लगता है’ जैसे भावुक अभिव्यक्तियों के साथ काव्य पाठ किया, जबकि पूनम भाटिया, कविता मुखर, अरुण ठाकर, सुनीता बिश्नोलिया और अन्य कवियों ने भी अपने विचारों और भावनाओं को काव्य रूप में व्यक्त किया।
काव्य संध्या में भाग लेने वाले कवियों में महेश कुमार, पूनम भाटिया, कविता मुखर, अरुण ठाकर, सुनीता बिश्नोलिया, प्रेम प्रकाश भूमिपुत्र, धीरेंद्र ठाकुर, लक्ष्मण सिंह और अन्य ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं का दिल जीता।
कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार महेश शर्मा, सिद्धार्थ भट्ट, अनिल यादव, साहित्यकार उमा, नवल पांडेय, सोमाद्री शर्मा और बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी उपस्थित रहे।
राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति के सचिव राजेंद्र बोड़ा ने अंत में आगंतुकों का आभार व्यक्त किया।

Author: News & PR Desk
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