दो दिन पहले, पृथ्वी शॉ एक यूट्यूब व्लॉग में काफी सहज नजर आए। उन्होंने इसमें सचिन तेंदुलकर से मिले सबसे महत्वपूर्ण सलाह के बारे में बात की। शॉ ने सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर करण सोनावने के यूट्यूब चैनल ‘फोकस्ड इंडियन’ पर बताया कि तेंदुलकर ने उन्हें कहा था, “डिसिप्लिन बीट्स टैलेंट”। लेकिन सोमवार का दिन शायद उनके लिए सबसे मुश्किल रहा। जेद्दाह में हुए आईपीएल मेगा ऑक्शन में उन्हें किसी भी टीम ने खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखाई।
2018 में अंडर-19 वर्ल्ड कप जीतने वाले कप्तान और टेस्ट डेब्यू पर शतक लगाने वाले इस बल्लेबाज को कभी भारतीय क्रिकेट का अगला सुपरस्टार माना जा रहा था। लेकिन, शॉ का नाम नीलामी में दो बार आया और 75 लाख रुपये के बेस प्राइस के बावजूद किसी ने भी बोली नहीं लगाई।
दिग्गजों की अनदेखी
नीलामी के दौरान एक तरफ सौरव गांगुली थे, तो दूसरी ओर राहुल द्रविड़। इन दिग्गजों के साथ अशिष नेहरा, पार्थिव पटेल, जस्टिन लैंगर, रिकी पोंटिंग, स्टीफन फ्लेमिंग और डेनियल वेटोरी भी थे। लेकिन किसी ने भी शॉ में दिलचस्पी नहीं दिखाई।
कभी अपने खेल और मासूम चेहरे से भारतीय क्रिकेट प्रशंसकों के दिलों पर छा जाने वाले पृथ्वी शॉ आज अपने करियर के नाजुक मोड़ पर खड़े हैं। यह मोड़ उनके करियर को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकता है या पूरी तरह से खत्म कर सकता है।
अनुशासन की कमी पर सवाल
पूर्व भारतीय चयनकर्ता ने पीटीआई को बताया, “पृथ्वी शॉ दिल्ली कैपिटल्स के साथ थे। वहां उन्हें राहुल द्रविड़, रिकी पोंटिंग और सौरव गांगुली जैसे दिग्गजों से सीखने का मौका मिला। यह भी जगजाहिर है कि सचिन तेंदुलकर ने भी उन्हें कई बार मार्गदर्शन दिया है। क्या ये सभी महान खिलाड़ी बेवकूफ हैं? क्या शॉ में कोई बदलाव दिख रहा है? शायद नहीं।”
मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन (एमसीए) ने भी शॉ को रणजी टीम से अनफिट होने के कारण बाहर किया था। बाद में उन्हें सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी के लिए वापस बुलाया गया।
पूर्व दिल्ली कैपिटल्स फील्डिंग कोच मोहम्मद कैफ ने जियो सिनेमा पर कहा, “मैच से एक रात पहले उन्हें टीम से बाहर कर दिया जाता, लेकिन मैच के दिन सभी मिलकर कहते, चलो एक और मौका देते हैं। शायद इस बार वह कुछ कर दिखाएं।”
रिकी पोंटिंग ने क्रिकबज के साथ एक इंटरव्यू में कहा, “जब आपको लगता है कि खिलाड़ी आपके लिए प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं और टीम को आगे ले जाने में मदद नहीं कर रहे हैं, तो आपको अन्य विकल्पों की तलाश करनी पड़ती है। मैंने पृथ्वी के साथ कई बातचीत की है, लेकिन वह अपने खेल में सुधार नहीं कर पाए।”
विनोद कांबली से तुलना
शॉ के करियर की तुलना अब विनोद कांबली से की जा रही है। विनम्र पृष्ठभूमि, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर त्वरित सफलता, और फिर तेज गिरावट। फर्क यह है कि 1990 के दशक में क्रिकेट समाज इतना विकसित नहीं था। कांबली को सही मार्गदर्शन नहीं मिला।
शॉ के पास मदद करने वाले लोग हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या वह इस मदद को स्वीकार करना चाहते हैं?
आगे की राह
शॉ को अपने जीवन और करियर के बारे में आत्ममंथन करने की जरूरत है। उन्हें फिटनेस सुधारनी होगी, ढेर सारे रन बनाने होंगे और सबसे पहले यह तय करना होगा कि वह अपनी कहानी को एक छोटा सा अध्याय बनाना चाहते हैं या एक महाकाव्य उपन्यास। इस सवाल का जवाब ही उनकी आगे की राह तय करेगा।
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