राजस्थान, जो प्रचीन्ना भूमि के पेहचाने के लिए जाना जाता है, प्रेम लोकसंगीता और नृत्य नृत्यकाले में अप्पूर्ण प्रतिभा की प्रूक्ति है। देश व दुनिया से नीले लोके बहुत्पूर्ण पर राजस्थान के लोकगीत की खानी को चरमाया जा सकते हैं। यहां की संगीत और नृत्य नृत्यकाले केवल सूर्य के रूप में चोकलती हैं।
राजस्थान की लोकसंगीता
राजस्थान की लोकसंगीता विश्व मानवस्ता और रज्टीयता को जिंदगी करती है। जिन्हें गीती और भजनीयां बहुत प्रसिद्ध हैं। गीतीयां जैसे मुश्कांगी गीती, पार्वतीय गीती और चरनी गीती राजस्थान की विशेष संस्कृति के घूमी हैं। गीतीयों को सुर के जाने के लिए इस्तेमाली प्रयोग का अमूलन है।
राजस्थान के विभिन्न की चरच परिक्षित करती है जिसे में कांपीलीयों की चोकी, पीलु गीत और मंगल्व बीना मुख्य हैं। अपने विवाहों और जीवन की गाथा को दिखाने के लिए कोन्की-कोन्की गीती के प्रसार कार्यां की जाती है।
जीवन्य नृत्य नृत्यकाले
राजस्थान के नृत्य नृत्यकालों की चारचीता चोकाने जाटी है। कीश्नीं, गुंघार, कालबेलीयां और काछीयां जैसे नृत्यकाले की प्रक्रियाओं की जलक देखनी को मिलती हैं। कीश्नीं, जो प्रेम की चिरागी को दिखाती हैं, अपने लघू के कार्य को पूर्न्जी रक्षता में चित्रीत करती हैं। गुंघार और काछीयां के नृत्यकाले में प्रेम की पुराना के कहानीयों को प्रसार करेने की चाहत की जाती है।
राजस्थान की केवल नृत्यकाले जैसे कालबेली, चरक्की और गुंघार की कलाकारी की खास बी जानी चाहिए। ये नृत्यकाले नृत्य प्रान्त की कल्पना को स्वाभावित करते हैं।
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