भारतीय क्रिकेट टीम में जगह बनाना मुश्किल है, लेकिन अपनी जगह बरकरार रखना और भी कठिन है। देश के सबसे लोकप्रिय खेल में प्रतिभाओं की भरमार है, और इसी के चलते कई बार खिलाड़ियों को मौके न मिलने का मलाल रहता है। ऐसा ही कुछ हुआ है पूर्व क्रिकेटर मनोज तिवारी के साथ।
मनोज तिवारी ने हाल ही में एक इंटरव्यू में खुलासा किया कि 2006-07 रणजी ट्रॉफी में 99.50 की औसत से रन बनाने के बावजूद उन्हें भारतीय टीम में शामिल होने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा। 2008 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में उनका डेब्यू हुआ, लेकिन वह यादगार नहीं रहा। हालांकि, 2011 में वेस्टइंडीज के खिलाफ चेन्नई में खेलते हुए उन्होंने शानदार शतक लगाया और प्लेयर ऑफ द मैच बने। इसके बावजूद, उन्हें अगले छह महीनों में 14 मैचों के लिए टीम से बाहर रखा गया।
“टीम इंडिया का संचालन कप्तान की योजना से होता है”
मनोज तिवारी ने बताया, “उस वक्त टीम के कप्तान एमएस धोनी थे। भारतीय टीम में कप्तान का बड़ा रोल होता है। चाहे कपिल देव का दौर हो, सुनील गावस्कर का, मोहम्मद अजहरुद्दीन का या सौरव गांगुली का, टीम की योजनाएं कप्तान के इर्द-गिर्द ही बनती हैं। जब तक कोई सख्त प्रशासक नियम नहीं बनाता, यह सिलसिला चलता रहेगा।”
तिवारी ने आगे कहा, “जब मैंने वेस्टइंडीज के खिलाफ शतक लगाया, तो मेरी काफी तारीफ हुई। लेकिन इसके बाद मुझे यह भी समझ नहीं आया कि आखिर क्यों मुझे टीम से बाहर किया गया। उस समय खिलाड़ी सवाल पूछने से डरते थे, क्योंकि यह उनके करियर पर असर डाल सकता था।”
“रोहित और विराट रन नहीं बना रहे थे, लेकिन मैं बाहर था”
मनोज तिवारी ने आरोप लगाते हुए कहा, “उस समय टीम में रोहित शर्मा, विराट कोहली और सुरेश रैना जैसे खिलाड़ी थे। उस दौरे पर वे रन नहीं बना रहे थे, लेकिन मुझे लगातार 14 मैचों के लिए बाहर रखा गया। उस दौर में बाहर किए गए खिलाड़ियों को पर्याप्त प्रैक्टिस का मौका भी नहीं मिलता था।
मुझे कई बार संन्यास लेने का विचार आया, लेकिन परिवार की जिम्मेदारियों के कारण ऐसा नहीं कर सका। एक खिलाड़ी के लिए यह बहुत निराशाजनक होता है कि वह अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद टीम में जगह नहीं बना पाए।”
मनोज तिवारी ने मौजूदा चयन समिति के प्रमुख अजित अगरकर पर भरोसा जताया कि वह कड़े फैसले लेने में सक्षम हैं और कोच से असहमति जताने की हिम्मत रखते हैं।
सवाल उठाती कहानी
मनोज तिवारी का यह बयान भारतीय क्रिकेट में खिलाड़ियों के चयन प्रक्रिया और कप्तान की भूमिका पर सवाल खड़ा करता है। क्या वास्तव में टीम इंडिया के भीतर इस तरह के हालात रहे हैं? यह मुद्दा बहस के लिए दरवाजा खोलता है।
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