नई दिल्ली: दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में हवा की गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ श्रेणी में बनी हुई है। इस पराली जलाने से लेकर निर्माण कार्य और वाहनों के प्रदूषण तक, कई कारक इसमें योगदान दे रहे हैं। हालांकि, सेंट्रल एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM) ने पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में कमी के लिए राज्य की सराहना की है, लेकिन नासा गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के वैज्ञानिक हिरण जेठवा ने दावा किया है कि किसानों द्वारा नासा सैटेलाइट के निरीक्षण समय को चकमा देकर पराली जलाने के कारण इन घटनाओं की वास्तविक संख्या कम रिपोर्ट हो रही है।
सैटेलाइट तस्वीरें क्या दिखाती हैं?
NDTV को मिली नासा की सैटेलाइट तस्वीरें 18 नवंबर को दोपहर 2:18 बजे की हैं। ये तस्वीरें अमृतसर के पश्चिमी क्षेत्र की हैं, जहां बड़ी मात्रा में धुआं पराली जलाने से निकलता दिखा। तस्वीरों में लाल घेरे पराली जलाने की जगहों को चिन्हित करते हैं। विशेषज्ञों ने 8 से अधिक ऐसी जगहों की पहचान की है, जहां से पराली जलाने की पुष्टि हुई।
अमृतसर एयरपोर्ट के पास एक खेत में जल रही पराली से उठता धुआं कई घंटों तक जारी रहा, जिससे क्षेत्र में दृश्यता कम हो गई और एयरपोर्ट पर उड़ान संचालन प्रभावित हुआ। यह धुआं दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों की वायु गुणवत्ता को और खराब कर रहा है, जिससे पूरे इंडो-गैंगेटिक मैदान को एक ‘गैस चेंबर’ में बदल दिया है।
नासा और अन्य सैटेलाइट के डेटा में अंतर
हिरण जेठवा के अनुसार, “नासा के सैटेलाइट्स का निरीक्षण समय दोपहर 1:30-2:00 बजे के आसपास होता है। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि किसान अब यह समय जान गए हैं और पराली जलाने का काम देर दोपहर में करते हैं। हालांकि, दक्षिण कोरियाई जियोस्टेशनरी सैटेलाइट हर 5 मिनट में तस्वीरें लेता है और इससे यह खुलासा होता है कि पराली जलाने की अधिकांश घटनाएं दोपहर 2 बजे के बाद होती हैं।”
NDTV द्वारा एक्सेस की गई तस्वीरें, जो मैक्सार इमेजरी द्वारा 2:18 बजे कैप्चर की गईं, इस बात की पुष्टि करती हैं कि नासा के SUMOI-NPP/VIIRS सेंसर्स द्वारा प्रोसेस किए गए डेटा में पराली जलाने की घटनाएं दर्ज नहीं हो पाईं।
थर्मल इनवर्जन भी है बड़ा कारण
थर्मल इनवर्जन (गर्मी की परतों का उल्टा होना) दिल्ली में अचानक बढ़े स्मॉग का एक और बड़ा कारण है। हिरण जेठवा ने समझाया कि “थर्मल इनवर्जन के कारण, गर्म हवा ठंडी हवा के ऊपर बैठ जाती है और प्रदूषकों का वर्टिकल मिक्सिंग नहीं हो पाता। इसका नतीजा यह होता है कि प्रदूषक सतह के करीब फंसे रहते हैं।”
सैटेलाइट तस्वीरों में देखा गया कि पराली जलाने से निकलने वाला धुआं या तो बादलों के साथ मिल जाता है या उनके ऊपर तैरता है, जिससे यह थर्मल इनवर्जन और बढ़ता है।
आगे की राह
विशेषज्ञों के अनुसार, स्मॉग टावर जैसी अस्थायी उपाय समस्या का समाधान नहीं कर सकते। पराली जलाने की समस्या को जड़ से हल किए बिना दिल्ली और उसके आसपास की वायु गुणवत्ता में सुधार संभव नहीं है।
यह रिपोर्ट दिखाती है कि पराली जलाने की घटनाओं की सही गिनती और उसके प्रभाव को कम करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की सख्त जरूरत है।
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