नई दिल्ली: तालिबान ने इकरामुद्दीन कमिल को मुंबई में कार्यवाहक काउंसल के रूप में नियुक्त किया है, जो भारत में तालिबान शासन द्वारा की गई पहली ऐसी नियुक्ति है। तालिबान-नियंत्रित मीडिया आउटलेट ने सोमवार को इसकी पुष्टि की। हालांकि, भारतीय पक्ष की ओर से इस नियुक्ति पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। यह नियुक्ति तब हुई है जब पिछले हफ्ते काबुल में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने तालिबान के कार्यवाहक रक्षा मंत्री मुल्ला मोहम्मद याकूब से पहली मुलाकात की थी।
कमिल पहले से ही मुंबई में मौजूद हैं और तालिबान के विदेश मंत्रालय के अनुसार, वह वहां अफगान नागरिकों के लिए वाणिज्यिक सेवाएं संभालेंगे। तालिबान के उप विदेश मंत्री शेर मोहम्मद अब्बास स्तनिकज़ई ने भी कमिल की इस नियुक्ति के बारे में सोमवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर जानकारी दी।
जानकारी के अनुसार, इकरामुद्दीन कमिल ने इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस (आईसीसीआर) से छात्रवृत्ति प्राप्त कर नई दिल्ली में स्थित साउथ एशियन यूनिवर्सिटी (एसएयू) से पढ़ाई की थी। उन्होंने कानून की पढ़ाई इस्लामिक यूनिवर्सिटी, इस्लामाबाद से की और बाद में साउथ एशियन यूनिवर्सिटी से एमफिल और पीएचडी की डिग्री हासिल की। बताया जा रहा है कि भारतीय राजनयिक स्टाफ की कमी के कारण और अफगान समुदाय की वाणिज्यिक समस्याओं के समाधान के लिए उनकी नियुक्ति की गई है।
अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार के दौरान नियुक्त अधिकांश राजनयिक, जिनमें पूर्व राजदूत फ़रीद मामुंदजई भी शामिल थे, भारत छोड़ चुके हैं। मामुंदजई के 2023 में देश छोड़ने के बाद, नई दिल्ली स्थित अफगान दूतावास के अन्य अधिकारियों ने पिछले वर्ष समर्थन की कमी के चलते दूतावास को बंद कर दिया था। मुंबई में काउंसल के रूप में नियुक्त ज़किया वरदक ने दूतावास का संचालन संभाला था, लेकिन मई 2024 में इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफे से पहले उन पर दुबई से 25 किलो सोना लाने के प्रयास में मुंबई एयरपोर्ट पर हिरासत में लिए जाने का आरोप भी था।
कमिल, जो पूर्वी अफगानिस्तान के नंगरहार प्रांत के पश्तून हैं, को तालिबान सरकार द्वारा मुंबई में अफगानी नागरिकों के लिए वाणिज्यिक सेवाओं को संभालने की जिम्मेदारी दी गई है।
जैसा कि अन्य देश तालिबान शासन को मान्यता नहीं देते हैं, भारत ने भी तालिबान शासन को आधिकारिक मान्यता नहीं दी है। हालांकि, अगस्त 2021 में अशरफ गनी सरकार के पतन के बाद भारतीय अधिकारियों ने काबुल से अपनी राजनयिक टीम को वापस बुला लिया था, लेकिन जून 2022 में एक “तकनीकी टीम” को फिर से काबुल में तैनात कर भारत ने अपनी राजनयिक उपस्थिति स्थापित की।
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